हिंगलाज माता के कांबड़ीया

ओमप्रकाश जी केकड़ी

2020-05-16 06:58:57

अलखनामी साद
अलखजी के मंदिर राजस्थान में कई स्थानों पर बने हुए हे ,सामान्यतया अलखजी के मंदिर में एक चरण की पूजा प्राचीन काल से की जा रही हे ,सबसे अधिक मान्यता प्राप्त अलख जी का मंदिर गाँव जुंजाला जिला नागौर में हे
उसके बाद जैतगढ़,कड़ेल ,मझेवला,जिला अजमेर में हे अन्य कई स्थानों पर यथा अलख जी का खेड़ा जिला चित्तोरगढ़ , गांव घट्टा जिला भीलवाड़ा ,साखोंन जिला जयपुर व् कई अन्य स्थानों पर बने हुए हे इनमें से अधिकांश अलख जी के पुजारी कामड़ साद होते हे जिन्हे अलखनामी साद भी कहते हे
समस तबरेज़ पीर सन ११४८ से १२८५ के मध्य अपने जीवन काल में मुल्तान से कश्मीर पंजाब होते हुए राजस्थान आये ,इसके पीछे रोचक कहानी यह भी मानी जाती हे कि बग़दाद के बादशाह के मृत बेटे को समझ पीर ने अपने हुकम से ज़िंदा कर दिया तब अन्य मौलवियों ने बादशाह से शिकायत की कि समझ पीर ने शरीयत क़ानून का उल्लंघन किया हे व् खुदा की तोहींन कर खुद के आदेश से बालक को जीवित किया हे यह कोई जादूगर हे जो अपने चमत्कार से लोगो को वशीभूत कर लेगा ,लोगो का खुदा पर से विश्वास ख़त्म जाएगा ,इसको शरीयत के अनुसार जीवित ही खाल निकाल देना चाहिए तब बादशाह के आदेशानुसार उसकी खाल निकाल दी गयी व् बहुत प्रताड़ित किया तब वह मुल्तान शहर में घरो के बाहर जाता लोग उसे देखकर अपने दरवाजे बंद कर लेते इस प्रकार वह कई दिनों तक भूखा प्यासा रहा एक दिन कसाई ने उसे मांस का टुकड़ा दिया तब समस पीर ने सूर्य से प्रार्थना की कि सूर्य अरबी में सूर्य को समस कहा जाता हे समस का समस से काम पड़ा हे इस मांस के टुकड़े को सेक दे ताकि में भूख मिटा सकू तब कहते हे सूर्य की प्रचंड गर्मी से पूरा शहर घबरा गया ,बादशाह को भी अपनी गलती का अहसास हुवा तब क्षमा प्रार्थना की गयी समस पीर के क्षमा करने पर तापक्रम कम हुवा तब बादशाह का लड़का भी उसके साथ हो लिया
दिल्ली पर आक्रमण होने से राजा रणसींघ जी अपने आठ पुत्रो के साथ नरेणा जिला जयपुर के क्षेत्र में जंगलो में रहते थे इन्होने समस पीर को व्यापारी समझ कर लूट लिया तब समस पीर ने राजा रणसिंघ को श्राप दिया जिससे उनको चर्म हो गया
उस समय काल में रिख खीवण जी भक्ति भाव करते व् संत वृति से रहते जो की समस ऋषि के शिष्य भी थे ,एक दिन खीवण जी की घर वाली पानी लेने कुवे पर गयी वहां रणसींघ जी पानी पीने के लिए आये पानी पीने व् कुछ छींटे लगने से उनके चर्म रोग में फायदा हुवा तब वो पनिहारी के साथ खिंवण जी के घर गए व् अपनी व्यथा कही तब रात को गुरु समस की कुटिया पर खीवणजी रणसिंघ जी को ले गए समस पीर दूध पीकर कटोरा खीवण जी को दिया खीवण जी ने कटोरा रणसिंघ जी को दे दिया जिसे पीने से उनका चर्म रोग दूर हो गया लेकिन ज्योही समस पीर को पता लगा वो नाराज हो कर वहा से चल दिए उधर रनसिंघजी व् खीवण जी रोजाना जम्मा जागरण करते इसकी खबर दिल्ली बादशाह को मिली तब दोनों को दिल्ली बुलाया गया उन दोनों संतो ने कहा हमारा बादशाह से कोई काम नहीं बादशाह को काम हो तो खुद आ कर मिल ले तब बादशाह के मंत्रियो ने कहा कि उन दोनों को जागरण का निमंत्रण दे कर बुलावोगे तो आ जाएंगे ,दोनों को दिल्ली बुलाया गया वहा बादशाह की जेल में 1440 साधू पहले से बंद थे जो चक्की पिसते थे ,बादशाह ने उनको दिल्ली बुलाकर करवत से कटवा दिया
कहते हे उनकी देह से फूल व् दूध निकला जिससे बादशाह घबरा गया जिसकी लाल किले में दूध पीर फूल पीर
के नाम से दरगाह बताते हे उनका लाश का आधा आधा हिस्सा नरेना व् बिचून में दफ़न किया गया ,जहा बादशाह के द्वारा निकाली गयी जमीन दरगाह मेला छड़ी आदि आज भी मौजूद हे बाद में जयपुर महाराजा ने भी उस पट्टे का नया पट्टा बना कर प्रमाणित किया
उधर मुल्तान में समस पीर ने समाधि ले ली यह खबर ले कर शंकर नामक चेला मुल्तान से वापस बिचून आया जिनकी वंश परम्परा आज भी कायम हे मेघवंश इतिहास पुस्तक में महात्मा श्री गोकुल दास जी ने दोनों पट्टे का फोटो दिया हे व् अन्य 13 पिराणा व् 12 पीर स्थानों का वर्णन किया हे जिन पर शोध कर आगे के पेज में जानकारी दी जाएगी

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