कामड़ शब्द परिभाषा
कामड़ शब्द का निर्माण का + अम्ब + ड से हुआ है अम्ब का अर्थ माँ या जल से होता है इससे पूर्व का लगने से काम्ब हुआ इसका अर्थ छड़ी हुआ स्री संज्ञा, इसे पुरुष संज्ञा बनाने के लिए ड़ प्रत्यय लगा है इस प्रकार काम्बड़ का आशय अम्बा के छड़ी दार से है जो दूर दूर जाकर हिंगलाज माता के मत का प्रचार करते है।
कामड़ो की उत्पत्ति
कामड़ो की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई किंवदंतियां प्रचलित है। कहते है भगवान के कान से जिस प्रथम पुरुष की उत्पत्ति हुई उसका नाम "काँवर" था। एक समय भगवान के यहाँ हो रहे नृत्य गान में यह काँवर भी जा पहुंचा, तो भगवान ने वहीं उसे सिर पर कलश लिए नाच नृत्यांगनाओं के साथ मजीरों की संगति करने बिठा दिया। कहते है तभी से काँवर होते-होते कामड़ हो गया और मजीरा इनका मुख्य वाद्य बन गया। प्राचीन कल में वैदिक धर्म के कर्मकांड और ब्राह्म आचार जन सामान्य के समझ से बाहर की बात थी। जन सामान्य को सत्य को जानने व जीवन के रहस्य को बताने के लिए अपभ्रंश व प्राकृत भाषा द्वारा मनुष्य के अंत मन व [घट] शरीर में सिध्दों ने इसका रहस्योद्घाटन किया व लोक भाषा में वाणी या पद्य गायन व नृत्य द्वारा इसमें आकर्षण उत्पन्न किया जिसका प्रसार जोगी व जंगम ने किया सिद्ध लोक साधना द्वारा अलौकिक सिद्धियां प्राप्त चमत्कार पूर्ण व अति प्राकृतिक शक्तियों से युक्त व्यक्ति सिद्ध कहलाते थे इनमे ८४ सिद्ध प्रसिद्ध हुए। सिद्धों के महायानी सिद्ध व नाथों के कपिलानी व कापालिक नाथ गुरु अति प्राचीन काल में तम्बरु शिवगण नाम से जाने जाते है। बाद में तेरह ताली कामङिया। शिवजी के १८ पंथ व गोरखनाथजी में शिवजी के १२ पंथों को नष्ट कर ६ पंथ अपने और मिलाकर नए १२ पंथों की स्थापना की इनमे कपिलानी पंथ से भी कामड़ साधुओं की उत्पत्ति मानी गई है। जिसके मुख्य आचार्य कपिल भगवान विष्णु के अवतार थे। इस प्रकार शिवपंथ के वैष्णव योग होने से इनके उपासकों के नाम के साथ दास शब्द भी लगा है तथा अलख के चरण की पूजा को मान्यता दी गई है। कामड़ पर्यायवाची शब्द : प्राचीन काल में कामड़ का कर्म करने वालों को देश काम व परिस्थिति के अनुसार अलग अलग समय व स्थान पर इतिहास व पुराण आदि में निम्नलिखित नाम से सम्बोधन किया जाता है - तबरु, तालजंघ, जंगम, तेरहताली, कपिली सन्यासी, कापड़ी, कामड़, कामङिया, पीर, पंडा, साधु, बाबाजी, सिद्ध साधु महाराज आदि इनमे गौत्र शामिल नहीं है ।
कामड़ साधुओं की विशेषता
इस सम्प्रदाय के साधुओं की विशेषता के बारे में कहा कि
कामड होय काम बस राखे,काया कसे करारी।
धोका मेट धणिया ने ध्यावे करे अलख से यारी ।
यानि वह पुरुष कामड़ है जो अपने कामनाओं को नियंत्रण में रखता है तथा अपने शरीर को योगाभ्यास से मजबूत बनाता है तथा संसार में निडर होकर घूमता है तथा मित्रता केवल अलख से करता है।